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कौन था वो देशभक्त जम्मू कश्मीर पुलिस इंस्पेक्टर जो कश्मीर के काशीपुरा इलाके में निहत्था अकेला हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों से लड़ रहा था ? |New Delhi Cables

कौन था वो देशभक्त जम्मू कश्मीर पुलिस इंस्पेक्टर जो कश्मीर के काशीपुरा इलाके में निहत्था अकेला हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों से लड़ रहा...

कौन था वो देशभक्त जम्मू कश्मीर पुलिस इंस्पेक्टर जो कश्मीर के काशीपुरा इलाके में निहत्था अकेला हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों से लड़ रहा था ?
                            Inspector Chunni Lal Shalla
ऐसे आर्टिकल पहले भी लिखे जा चुके हैं,इस आर्टिकल का मकसद आपके जिंदा शरीर में मरी हुई आत्मा को जगाना है !!

कौन थे इंस्पेक्टर चुन्नीलाल शाला?
चुन्नीलाल शाला का जन्म बारामुला में सोपोर के पास "शीर जागीर" नाम के गांव में एक कश्मीरी ब्राह्मण जमींदार परिवार में हुआ था.चुन्नीलाल जी की प्रारंभिक शिक्षा सोपोर में ही हुई थी और उसके बाद कॉलेज में पढ़ाई करने के लिए वो S. P. College श्रीनगर गए थे.शाला साहब शुरू से ही फोर्स में नौकरी करना चाहते थे
चुन्नीलाल शाला की बेटी डॉ सुषमा कॉल बताती हैं कि उनके पिता को कॉलेज में पढ़ाई करते हुए फोर्स की नौकरी की तरफ ज्यादा आकर्षण था इसलिए उन्होंने जम्मू-कश्मीर पुलिस में सब-इंस्पेक्टर की पोस्ट से ज्वाइन किया.

इंस्पेक्टर चुन्नीलाल शाला का परिवार कश्मीर में कहां रहता था?

सुषमा कॉल बताती हैं कि 1990 के दौरान उनकी फैमिली कश्मीर के बारामुला सिटी में रहती थी और वहां के कश्मीरी हिंदुओं के साथ बहुत ही सौतेला व्यवहार किया जाता था क्योंकि कश्मीरी हिंदू अल्पसंख्यक थे तो जब कभी इंडिया-पाकिस्तान का क्रिकेट मैच होता था और अगर इंडिया उस मैच में जीत जाता था तो वहां के कश्मीरी मुस्लिम हार का गुस्सा हिंदुओं के घरों में पत्थर बरसा कर उतारते थे.

कैसा था 1989-90 में कश्मीर का माहौल ?

उस दौरान सुषमा शाला करीब 13-14 साल की थी और बारामुला के सेंट जोसेफ स्कूल में पढ़ती थी | वह बताती हैं कि 1988 तक वहां लगभग सब कुछ सही ढंग से चल रहा था और अचानक 1989-90 की शुरुआत से जो उनकी मुस्लिम फ्रेंड्स एकदम से कटने लगी और उन लोगों ने स्कूल में पढ़ने वाले कश्मीरी हिंदुओ छात्रों से कन्नी काटने लगे और माहौल यहां तक हो गया कि जब कभी हिंदू बच्चे अपने मुस्लिम दोस्तों के पास जाते तो वह लोग एकदम से चुप हो जाते थे और आपस में बात करना बंद कर देते थे.
स्कूल में वहां के कश्मीरी मुस्लिम छात्रों ने हिंदुओं से अलग अपना एक ग्रुप बना लिया था और आहिस्ता-आहिस्ता उन्होंने हिंदू छात्रों से बात करना, मिलना जुलना और जैसे कि बच्चे एक-दूसरे के साथ चीजें शेयर करते हैं,सब बंद कर दिया था |

कश्मीरी आतंकवादियों ने कैसे अल्पसंख्यक कश्मीरी हिंदू के मन में डर बैठाया?
    Tika Lal Taploo
कश्मीरी हिंदू अल्पसंख्यकों को डरा कर वैली से भगाने के लिए, JKLF के आतंकवादियों ने 14 सितंबर 1989 को हिंदुओं के एक बड़े लीडर टीका लाल टपलू को श्रीनगर में दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई और आतंकवादी यही नहीं रुके और 
आतंकवादियों ने हाई कोर्ट के जज नीलकंठ गंजू, जिन्होंने मकबूल भट्ट को फांसी की सजा सुनाई थी ,उनको भी गोली मारकर हत्या कर के कश्मीरी हिंदुओं को डायरेक्ट ये मैसेज दिया कि अब तुम लोग कश्मीर में नहीं रह सकते हो और उसके बाद कश्मीर के हिंदू
    Dead Body of High Court Judge Neel Kanth Ganjoo
 लीडर्स की टारगेट किलिंग्स शुरू हो गई और इन सभी निर्दोष हिंदुओं की हत्या करने के बाद हमेशा ये कारण दिया जाता था कि यह भारत सरकार के मुखबिर हैं,BJP के हैं या RSS से संबंध रखते थे.

19 जनवरी 1990 को बारामुला में क्या हुआ था ?

19 जनवरी 1990 आते-आते कश्मीरी हिंदू लीडर्स के साथ-साथ,वहां के सामान्य हिंदू परिवारों को भी टारगेट किया जाने लगा,जिसमें कश्मीरी हिंदू बेटों को की हत्या की जाने लगी और बेटियों को रेप किया जाने लगा या फिर रेप या जबरन मुस्लिम से शादी करा देने की धमकियां शामिल थीं और हद तो तब हो गई,जब 19 जनवरी 1990 की शाम को पूरी कश्मीर वादी की मस्जिदों से हिंदुओं के खिलाफ नफरत भरे नारे लाउडस्पीकर से जोर-जोर से लगाए जाने लगे।
उस समय शाला परिवार बारामुला के सिख एरिया में रहता था और इत्तेफाकन उस दिन इंस्पेक्टर शाला घर पर ही थे.जब उन्होंने ये आवाजें मस्जिदों के लाउडस्पीकर से सुनी तो इनके पीछे की हकीकत को पता करने के लिए  इंस्पेक्टर शाला पास के ही पुलिस स्टेशन में गए.

इसमें से मानवता को शर्मसार करने वाले कुछ नारे नीचे दिए गए हैं:-
1.Ralive, Tsaliv ya Galive (either convert to Islam, leave the land, or die)
2.Zalimo, O Kafiro, Kashmir harmara chodh do”.
(O! Merciless, O! Kafirs leave our Kashmir)
3.“Kashmir mein agar rehna hai, Allah-ho-Akbar kahna hoga”
(Any one wanting to live in Kashmir will have to convert to Islam)
4.La Sharqia la gharbia, Islamia! Islamia!
(From East to West, there will be only Islam)
5.“Musalmano jago, Kafiro bhago”,
(O! Muslims, Arise, O! Kafirs, scoot)
6.“Islam hamara maqsad hai, Quran hamara dastur hai, jehad hamara Rasta hai”
(Islam is our objective, Q’uran is our constitution, Jehad is our way of our life)
7.“Kashmir banega Pakistan”
(Kashmir will become Pakistan)
8.“Kashir banawon Pakistan, Bataw varaie, Batneiw saan”
(We will turn Kashmir into Pakistan alongwith Kashmiri Pandit women, but without their men folk)
9.“Pakistan se kya Rishta? La Ilah-e- Illalah”
 (Islam defines our relationship with Pakistan)
10. “Dil mein rakho Allah ka khauf; Hath mein rakho Kalashnikov”
(With fear of Allah ruling your hearts, wield a Kalashnikov)
11.“Yahan kya chalega, Nizam-e- Mustafa”
(We want to be ruled under Shari’ah)
12.“People’s League ka kya paigam, Fateh, Azadi aur Islam”
(“What is the message of People’s League? Victory, Freedom and Islam.”)

19 जनवरी 1990 को शाला परिवार ने अपनी जान कैसे बचाई?

जब इंस्पेक्टर शाला अपने घर वापस आए तो उनके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था और साथ ही आते ही उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों से कहा तुम सब जल्दी डिनर कर लो और आज की रात हम लोग बेसमेंट में ही सोएंगे.
जब बच्चे अपना डिनर कर रहे थे तब इंस्पेक्टर शाला और सुषमा शाला के मामा,जो कि उस समय उन लोगों के साथ ही रह रहे थे,उन्होंने घर के मुख्य द्वार पर घर के सबसे भारी फर्नीचर लगा दिए थे.
ये जो बेसमेंट था ,ये एक ऐसी जगह थी घर की जहां पर शाला परिवार सर्दियों के लिए लकड़ियां रखता था या फिर घर में जो गैर जरूरी चीजें होती थी,उनको रखा जाता था और वो रात शाला परिवार ने बेसमेंट में काटी.

इंस्पेक्टर शाला ने सोने से पहले अपनी बेटी सुषमा को दो चाकू क्यों दिए ?
                 Dr. Sushma Shalla Kaul
जब शाला परिवार बेसमेंट में सोने जा ही रहा था तभी इंस्पेक्टर शाला ने अपनी बेटी सुषमा को बुलाया और दो किचन नाइफ दिए और कहा "बेटा अगर आज की रात जिहादी भीड़ हमारे घर पर हमला करती है तो और ये भीड़ तुम तक पहुंचे, उससे पहले तुम अपनी इज्जत बचाने के लिए इन दो चाकू से खुद को मार  के खत्म कर लेना".

19 जनवरी 1990 के बाद शाला परिवार ने अपनी सुरक्षा के लिए क्या तय किया?
जब शाला परिवार सुबह उठा तो परिवार के सभी लोग इस पर विचार कर रहे थे की हमें यही बारामुला में रहना चाहिए या फिर किसी सुरक्षित स्थान जैसे जम्मू या दिल्ली चले जाएं.

तब इंस्पेक्टर शाला ने परिवार के बाकी सदस्यों से कहा कि-
हम यहां से क्यों जाएंगे?
ये हमारी मातृभूमि हैै!
हम यहां सदियों से रह रहे हैं!
हम यहां से नहीं जाएंगे!

उसी बीच केंद्र सरकार ने जगमोहन मल्होत्रा को जम्मू कश्मीर का गवर्नर बनाकर भेजा था जो कि पहले भी जम्मू कश्मीर के गवर्नर रह चुके थे और उनकी ऐसी छवि थी कि वहां रह रहे कश्मीरी हिंदू अल्पसंख्यक को लगा कि अब जब जगमोहन गवर्नर बन कर आ गए हैं तो अब जगमोहन सब सही कर देंगे.किसी को डरने की जरूरत नहीं है इसी का हवाला देते हुए इंस्पेक्टर शाला ने कहा जब जगमोहन गवर्नर बन कर आ गए हैं तो यह सब सही कर देंगे ज्यादा डरना या चिंता करने की जरूरत नहीं है. शायद यही शाला परिवार की सबसे बड़ी गलती या मासूमियत थी.

19 जनवरी  1990 के बाद बारामुला का माहौल कैसा हो गया था?

इंस्पेक्टर शाला की बेटी सुषमा जो कि उस समय 13-14 वर्ष की थी और बारामुला के सेंट जोसेफ स्कूल में पढ़ती थी और वह स्कूल आते जाते अपने मोहल्ले और गलियों में देखती थी कि धीमे-धीमे वहां से कश्मीरी हिंदू परिवार जम्मू,दिल्ली या फिर कश्मीर से बाहर अपने रिश्तेदार के घरों की तरफ पलायन कर रहे हैं.

जब कश्मीरी मुस्लिम लड़कों ने सुषमा शाला  को क्या धमकी दी थी?

जैसा कि वहां आसपास में सभी को पता था कि सुषमा शाला इंस्पेक्टर शाला की बेटी हैं तो कभी किसी ने भी उनके साथ कोई बदतमीजी करने की कोशिश नहीं की लेकिन जब एक दिन सुषमा शाला अपने स्कूल से वापस आ रही थीं। तब कुछ मुस्लिम लड़कों ने उनको रोका और कहा की सुन "हम तुझे मुस्लिम बनाएंगे और तेरी शादी एक मुसलमान से कराएंगे और ये तुम अपने बाप को बता देना"

जब शाला परिवार जम्मू जाने के लिए मजबूर हुआ?
जब सुषमा साला अपने घर पहुंची तो उन्होंने इस घटना का जिक्र अपनी मां से किया और साथ ही कहा कि अब मुझे स्कूल जाने में डर लगता है! और इसके बाद शाला परिवार ने परिवार ने ये तय किया कि अब हम बारामुला में नहीं रहेंगे और जम्मू चले जाएंगे.

इस घटना के बाद परिवार ने तय किया इंस्पेक्टर शाला को छोड़कर सारा परिवार जम्मू चला जाएगा और इंस्पेक्टर शाला बाद में अपने पुलिस की विभागीय जिम्मेदारियों को पूरा करके जम्मू आ जाएंगे। वहीं पास में जब ये बात उनकी बेटी सुषमा ने सुनी तो वह इसके लिए तैयार नहीं हुई और उन्होंने कहा की सभी लोग साथ में जाएंगे या फिर सभी लोग यहां रहेंगे।

अगली सुबह जब इंस्पेक्टर शाला अपने परिवार को जम्मू छोड़ने जाने के लिए छुट्टी अप्लाई करने ने जा रहे थे तो एकदम से वह वापस आए और अपनी बेटी सुषमा के सर पर हाथ रख कर बोले कि "देख तू घर में सबसे बड़ी है सबका ख्याल रखना" और जवाब में जब उनकी बेटी सुषमा ने पूछा की डैडी कब वापस आओगे ? तो इंस्पेक्टर शाला का जवाब था "जाना अपने हाथ में है वापस आना अपने हाथ में नहीं है" और ये सुषमा शाला और उनके पिता के बीच की आखिरी बातचीत थी

क्या बारामुला के SHO कलंदर खान में शाला परिवार से झूठ बोला था?

जब उस शाम 8:00 बजे तक इंस्पेक्टर शाला अपने घर वापस नहीं आए तो सुषमा जी की मां ने अपने भाई को पुलिस स्टेशन इंक्वायरी के लिए भेजा और वहां पर SHO कलंदर खान ने कहा कि आप चिंता मत कीजिए,अभी हम थोड़ी देर में शाला साहब की खबर लेकर आपको बता देंगे

SHO कलंदर खान रात के करीब 9:00 बजे घर पर आए और उन्होंने सुषमा शाला की मां से कहा कि "मैडम चिंता की कोई बात नहीं है,मेरी शाला साहब से बात हो गई है वो मीटिंग में व्यस्त हैं,कल सुबह वो घर आ जाएंगे"।

जब इंस्पेक्टर शाला की हत्या की सूचना सुषमा शाला के परिवार को दी गई!
सारा परिवार अगले दिन दोपहर तक इंस्पेक्टर शाला के घर आने का इंतजार कर ही रहा था की करीब दोपहर के 3:00 बजे घर पर पास के पुलिस स्टेशन से कुछ सिपाही आते हैं जो कि सुषमा जी के मामा को पुलिस स्टेशन लेकर चले जाते हैं और जब सुषमा शाला के मामा शाम को 6:30 बजे घर आए तो उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया और सारी रात घर के कॉरीडोर में चक्कर काटते रहे।

सुषमा शाला बताती हैं कि ये सब देखते हुए काफी रात हो गई थी और पता नहीं कब उनकी आंख लग गई और वो सुबह घर के बाहर से आते हुए शोर के कारण जब जगी और उन्होंने घर से बाहर आकर देखा तो उनके फूफा जी,जो कि जम्मू कश्मीर आर्म्ड पुलिस में थे,वो आए हुए हैं और वो लोग आपस में कुछ बात कर रहे हैं।

जब सुषमा शाला के फूफा ने उनको उनके पिता की हत्या के बारे में बताया तो ये सुनने के बाद सुषमा शाला को ऐसा लगा कि जैसे उनके ऊपर आसमान टूट पड़ा हो,उनकी दुनिया उजड़ गई हो,किसी भी बेटी के लिए यह सदमा बर्दाश्त करना बहुत कठिन था और वो तेजी से अपनी मां के पास जाती हैं और जोर-जोर से रोने लगते हैं। 

इंस्पेक्टर शाला की हत्या का असर उनकी बेटी पर क्या हुआ ?
सुषमा शाला बताती हैं कि जब उनके पिता का पार्थिव शरीर उनके घर आया तो यह जानने के लिए उनके पिता को क्या हुआ है तो जैसे ही उन्होंने उनके पार्थिव शरीर को छुआ तो उनके पिता का शरीर बहुत ठंडा था,उनके सर पर एक मोटा सा बैंडेज बंधा हुआ था ,जिससे साफ पता चल रहा था कि उनको प्वाइंट ब्लैंक रेंज से गोली मारी गई है और उनके दांत किसी पलास से पकड़ कर निकाले गए हैं और हाथों के नाखून भी गायब थे और साथ ही हाथ पैर की सारी हड्डियां टूटी हुई थी।

ये सब देखने के बाद सुषमा शाला के ऊपर इसका ऐसा गहरा मानसिक असर हुआ कि कई सालों तक,वो किसी भी ठंडी चीज को छूने में डरती थी और कभी भी अपने पिता के बारे में बात करना पसंद नहीं करती थीं।

इंस्पेक्टर शाला की वीरगति का पता उनके परिवार को कैसे चला और कैसे उनके PSO अहमदुल्लाह ने उनको धोखा दिया?
शाला परिवार को कभी भी ये ना पता चलता की उनके पिता कैसे वीरता से लड़ते हुए शहीद हुए,अगर उन्हीं के मोहल्ले के कुछ लोग उस बस में ना बैठे होते, जिससे इंस्पेक्टर शाला वापस घर आ रहे थे।

इंस्पेक्टर शाला उस समय जम्मू कश्मीर पुलिस के CID विभाग में इंस्पेक्टर थे और कुपवाड़ा में अपनी पोस्टिंग के दौरान उन्होंने हिजबुल मुजाहिद्दीन के कई आतंकवादियों से पूछताछ की थी, जिसके बाद इंस्पेक्टर शाला को हिजबुल मुजाहिद्दीन की तरफ से उनको और उनके परिवार को जान से मारने परिवार धमकियां और लेटर मिलते रहते थे जिसकी इंस्पेक्टर शाला ने कभी कोई परवाह नहीं की और वह निर्भीक और निडर होकर अपना कर्तव्य करते रहे.

परिवार को जम्मू छोड़ने जाने के लिए जब वो कुपवाड़ा में छुट्टी अप्लाई करने गए और साथ ही अपना सर्विस रिवाल्वर वहां जमा करके वो अपने PSO मोहम्मद अहमदुल्लाह के साथ वापस बारामुला कि बस मैं बैठे ही थे कि तभी उनके PSO अहमदुल्लाह ने उनसे सिगरेट पीने की इजाजत लेकर बस से बाहर एक कसाई की दुकान  की तरफ जाने लगा और जब वो कसाई की दुकान के पास पहुंचा तो उसने वहां खड़े कुछ लोगों से बात की जो कि फेरन पहने हुए थे और PSO ने फेरन पर ऊपर से हाथ लगा कर ये पक्का किया की उन लोगों के पास हथियार हैं कि नहीं, फिर वो वापस आकर बस में बैठ गया।

शाला साहब के साथ उस दिन बस में उनके मोहल्ले में रहने वाले काफी लोग बैठे हुए थे | जैसे ही बस कुपवाड़ा से बारामुला के लिए चली तो कुछ ही देर बाद एक ओमनी वेन उसको ओवरटेक करती है और जबरन बस रुकवा कर, कुछ हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बस के ड्राइवर की कनपटी पर रिवाल्वर रखकर गाड़ी रोक लेते हैं और 4-5 आतंकवादी बस में AK-47 लेकर तेजी से घुसते हैं और चिल्लाकर पूछने लगते हैं कि इसमें से इंस्पेक्टर शाला कौन है? लेकिन कोई भी बस में बैठा आदमी नहीं बताता है और जैसे ही आतंकवादी नीचे उतरने लगते हैं तभी PSO अहमदुल्लाह खड़ा होता है और वो इंस्पेक्टर शाला की तरफ उंगली करके बोलता है  कि ये है इंस्पेक्टर शाला! ,ये है इंस्पेक्टर शाला!!

इंस्पेक्टर शाला को हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों ने जबरन बस से निकाला और वहां से  थोड़ी दूर काशीपुरा जगह पर ले जाकर टॉर्चर करने लगे और जब ये सारे आतंकवादी मिलकर उनको मारने लगे तब भी उन्होंने हार नहीं मानी ।

टॉर्चर के दौरान हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने उनके दांत निकाल लिए थे ,नाखून उखाड़ दिए थे तब भी इंस्पेक्टर शाला ने हार नहीं मानी और जब ये सब हो रहा था और एक निहत्था जम्मू कश्मीर पुलिस का देशभक्त इंस्पेक्टर इन आतंकवादियों से अकेला लड़ रहा था तो वहां काशीपुरा  के लोग खड़े होकर बेशर्मी से तमाशा देख रहे थे और उनमें से किसी का भी जमीर नहीं जागा और ये लोग खड़े होकर चिल्ला रहे थे कि देखो काफिर को कैसे फांसी दी जा रही है!

जब हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादि इंस्पेक्टर शाला को जबरन फांसी देने में नाकामयाब हो गए तो उनमें से एक आतंकवादी ने झल्लाकर बोला कि "इसको गोली मार दो"! फिर उनको पॉइंट ब्लंक रेंज से माथे में गोली मार दी जाती है और आतंकवादी उनके शरीर को वहीं छोड़कर भाग जाते हैं।

जब Kupwara Police के पुलिसकर्मियों ने इंस्पेक्टर शाला के पार्थिव शरीर को पहचानने से इनकार कर दिया?

जब पुलिस को ये जानकारी मिलती है और एक पुलिस दल वहां पहुंचता है और इंस्पेक्टर शाला के अंडर में काम किए हुए जम्मू कश्मीर के मुस्लिम पुलिसकर्मियों ने उनकी लाश की शिनाख्त करने से मना कर दिया था तब एक हिंदू पुलिसवाला जिसने शाला साहब के अंडर में काम किया था, शाला साहब की लाश की शिनाख्त की।

और इस तरह एक देशभक्त जम्मू कश्मीर पुलिस के साहसी इंस्पेक्टर चुन्नीलाल शाला, जिनके दांत निकाल लिए गए थे, ,जिनके नाखून उखाड़ दिए गए थे,जिनके हाथों और पैरों की सारी हड्डियां आतंकवादियों ने तोड़ दी थी,अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए।

आज अमर शहीद इंस्पेक्टर शाला का परिवार हमसे कुछ प्रश्न पूछता है:-
1. जब कश्मीर में हिंदुओं का नरसंहार हो रहा था तो भारत सरकार खामोश क्यों थी?
2. भारत का हिंदू समाज ये सब चुपचाप क्यों देखता रहा?
3. कैसे आजाद भारत में हिंदुओं का सामूहिक नरसंहार करके उनको उनके घरों से बाहर निकाल दिया गया?
4. जिन लोगों ने पाकिस्तान से ट्रेनिंग लेकर और कश्मीर  को भारत से अलग करना के मकसद से और जिहादी उन्माद में आकर देशभक्त कश्मीरी हिंदुओं की हत्या,बलात्कार और पलायन के जघन्य अपराध किए, उनको कब सजा मिलेगी?
5. 30 साल से न्याय के लिए कश्मीरी हिंदू भटक रहा है, हम भारतीय इनका साथ कब देंगे?

ऐसे आर्टिकल पहले भी लिखे जा चुके हैं,इस आर्टिकल का मकसद आपके जिंदा शरीर में मरी हुई आत्मा को जगाना है और अगर आपके मरे हुए शरीर में एक बार आत्मा जाग गई तो इन देशभक्त भारतीय कश्मीरी हिंदुओं को 30 साल बाद ही सही न्याय मिल जाएगा.

(अविचल पांडेय-स्तंभकार डॉ सुषमा शाला कॉल के भाई हैं )

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