आज सीता नवमी है। आज सीता नवमी है। रामनवमी बड़े धूमधाम से मनाई जाती मगर सीता नवमी की उतनी चर्चा नहीं होती है। सीता सूर्यवँशी व...
आज सीता नवमी है।
आज सीता नवमी है। रामनवमी बड़े धूमधाम से मनाई जाती मगर सीता नवमी की उतनी चर्चा नहीं होती है। सीता सूर्यवँशी विदेह राजवंश के पच्चीसवें राजा 'सिरध्वज जनक' की बेटी हैं। विदेह राजवंश इक्ष्वाकु के बेटे 'निमि विदेह' से आरम्भ होता है। इसी वंश के दूसरे राजा 'मिथि जनक विदेह' नें मिथिलांचल की स्थापना की थी जिसकी राजधानी मिथिला थी।
विदेह राज्य की राजकुमारी होने के कारण सीता को वैदेही भी कहते है। विदेह और विधेह संस्कृत के दो शब्द है। विधेह का अर्थ होता है जानना और विदेह का अर्थ होता है जहाँ देह महत्वहीन हो।
वैदेही का अर्थ है जो बिना देह की हों, आत्मा हो, स्वतंत्र हो, स्वछंद हो। सीता स्वतंत्र भी थी और स्वछंद भी। उन्हें चुना गया, धनुषभंग स्वयंवर में राम के द्वारा। सीता जो स्वतन्त्र है, स्वछंद है उनको चुना राम ने, जो मर्यादा में बंधे हैं, राम जो बंधन में हैं। सीता विदेह के मिथिला से अयोध्या आईं, राजवंश की बड़ी बहू बनकर। यहां उन्हें मर्यादित रहना था, स्वतंत्रता स्वच्छन्दता का यहां स्थान नही था। पर जब जरूरत पड़ी उन्होंने फैसले लिए। पूरी रामायण में आधा दर्जन से ज्यादा ऐसी घटनाएँ है जो दर्शाती है कि उन्हें फैसले लेने का हक था।
जब राम को वनवास मिला तो सीता ज़बरन राम के साथ वन गईं। राम ने मना किया पर सीता ने खुद से पहले पति के बारे में सोचा। जंगल में आप का ख्याल कौन रखेगा इसलिए मैं साथ चलूँगी। जब लक्षण ने लक्ष्मण रेखा खींची और रावण साधू वेश में आया तो सीता ने खुद की सुरक्षा से पहले राम के सम्मान का ख्याल किया। राम की पत्नी साधू को दरवाजे से भूखा लौटा दे तो क्या सम्मान रहेगा राम का। सीता ने लक्ष्मण रेखा पार करने आए फैसला लिया। जब रावण सीता से कहता है कि ऐसा क्या है राम में जो मुझमे नही है। रावण खुद को चुनने का आग्रह करता है मगर सीता यहाँ भी राम को चुनती हैं। जब हनुमान लंका में सीता से अपने साथ चलने का आग्रह करते है तब भी सीता राम का इंतज़ार करने का फैसला करती हैं।सीता कहती है ऐसे ही चली गई तो राजा राम के सम्मान का क्या होगा। यहाँ भी उन्होंने खुद से पहले राम के सम्मान के बारे में सोचा। उन्हें भरोसा है राम उन्हें लेने जरूर आएंगे।
सीता त्याग के बाद जब राम उन्हें वापस अयोध्या आने के लिए कहते हैं तब भी वो खुद फैसला लेती हैं और अयोध्या आने से इनकार कर देती हैं, भूमि में समा जाती है। इतना सब कुछ होने के बाद भी राजा जनक कभी उन्हें लेने नही आए न ही वो कभी जनक के पास लौट कर गई। क्योंकि मिथिला उनका मायका है ही नहीं, वो तो भूमि से आई हैं। वापस मायके चली गईं। सीता भूमि की पुत्री है, भूमिजा है औऱ राम यज्ञ से उत्पन्न अकाश पुत्र हैं। भूमि और अकाश साथ रह ही नहीं सकते। पहले कैकेई ने जबरन उन्हें अलग किया। तब सीता राम के पीछे पीछे गईं। फिर रावण ने दोनों को अलग किया। इस बार राम सीता के पीछे पीछे गए। फाइनली अयोध्या ने निर्णय लिया कि दोनों साथ नहीं रहेंगें। राम ने कहा जाओ सीते, अयोध्या तुम्हे डिज़र्व नहीं करती। राम को भरोसा था सीता अकेले रह सकती हैं। सीता को भरोसा था राम कभी दूसरी पत्नी नहीं लाएंगे।
दोनों कहीं भी रहें, मगर राम सिर्फ सिया के रहँगे। सिया सिर्फ राम की रहेगी। प्यार सिर्फ सिया राम का रहेगा। जहाँ प्यार होगा, वहीं सिया राम होंगे।।
जय सिया राम 🙏
जब राम को वनवास मिला तो सीता ज़बरन राम के साथ वन गईं। राम ने मना किया पर सीता ने खुद से पहले पति के बारे में सोचा। जंगल में आप का ख्याल कौन रखेगा इसलिए मैं साथ चलूँगी। जब लक्षण ने लक्ष्मण रेखा खींची और रावण साधू वेश में आया तो सीता ने खुद की सुरक्षा से पहले राम के सम्मान का ख्याल किया। राम की पत्नी साधू को दरवाजे से भूखा लौटा दे तो क्या सम्मान रहेगा राम का। सीता ने लक्ष्मण रेखा पार करने आए फैसला लिया। जब रावण सीता से कहता है कि ऐसा क्या है राम में जो मुझमे नही है। रावण खुद को चुनने का आग्रह करता है मगर सीता यहाँ भी राम को चुनती हैं। जब हनुमान लंका में सीता से अपने साथ चलने का आग्रह करते है तब भी सीता राम का इंतज़ार करने का फैसला करती हैं।सीता कहती है ऐसे ही चली गई तो राजा राम के सम्मान का क्या होगा। यहाँ भी उन्होंने खुद से पहले राम के सम्मान के बारे में सोचा। उन्हें भरोसा है राम उन्हें लेने जरूर आएंगे।
सीता त्याग के बाद जब राम उन्हें वापस अयोध्या आने के लिए कहते हैं तब भी वो खुद फैसला लेती हैं और अयोध्या आने से इनकार कर देती हैं, भूमि में समा जाती है। इतना सब कुछ होने के बाद भी राजा जनक कभी उन्हें लेने नही आए न ही वो कभी जनक के पास लौट कर गई। क्योंकि मिथिला उनका मायका है ही नहीं, वो तो भूमि से आई हैं। वापस मायके चली गईं। सीता भूमि की पुत्री है, भूमिजा है औऱ राम यज्ञ से उत्पन्न अकाश पुत्र हैं। भूमि और अकाश साथ रह ही नहीं सकते। पहले कैकेई ने जबरन उन्हें अलग किया। तब सीता राम के पीछे पीछे गईं। फिर रावण ने दोनों को अलग किया। इस बार राम सीता के पीछे पीछे गए। फाइनली अयोध्या ने निर्णय लिया कि दोनों साथ नहीं रहेंगें। राम ने कहा जाओ सीते, अयोध्या तुम्हे डिज़र्व नहीं करती। राम को भरोसा था सीता अकेले रह सकती हैं। सीता को भरोसा था राम कभी दूसरी पत्नी नहीं लाएंगे।
दोनों कहीं भी रहें, मगर राम सिर्फ सिया के रहँगे। सिया सिर्फ राम की रहेगी। प्यार सिर्फ सिया राम का रहेगा। जहाँ प्यार होगा, वहीं सिया राम होंगे।।
जय सिया राम 🙏
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